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ग़ज़ल
इन मध-भरी आँखों में क्या सेहर 'तबस्सुम' था
नज़रों में मोहब्बत की दुनिया ही सिमट आई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
शरह-ए-फ़िराक़ मदह-ए-लब-ए-मुश्कबू करें
ग़ुर्बत-कदे में किस से तिरी गुफ़्तुगू करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जाने किस रंग में तफ़्सीर करें अहल-ए-हवस
मदह-ए-ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार करूँ या न करूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ज़ुल्मतों की मद्ह-ख़्वानी और इस अंदाज़ से
ये किसी पर्वर्दा-ए-शब का नुमाइंदा न हो
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
नज़्म को सुन के मिरी हँस के ये बोला वो शोख़
मद्ह है शुक्र है शिकवा है गिला है क्या है