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ग़ज़ल
महाज़-ए-जंग पर सीना-सिपर हो कर मैं चलता हूँ
मगर बुज़दिल हमेशा पुश्त पर ही वार करते हैं
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
ग़ज़ल
भरोसा क़ुव्वत-ए-बाज़ू पे अपनी जो नहीं करता
महाज़-ए-जंग में उस के लिए लश्कर ज़रूरी है
सईद रहमानी
ग़ज़ल
यूँ बा-ए-फ़त्ह नहीं रहना ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में
महाज़-ए-जंग में पसपाइयाँ भी होती हैं
जावेद अख़्तर आज़ाद
ग़ज़ल
बहुत दिन से मैं 'साजिद' दरमियाँ हूँ अपने प्यारों के
कि ठंडा पड़ चुका है अब महाज़-ए-जंग पानी का
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
तालिब-ए-सुल्ह हूँ मैं और नज़र तालिब-ए-जंग
रात दिन लड़ने पे तय्यार बड़ी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
अब वा'इज़-ओ-ज़ाहिद हैं बहम दस्त-ओ-गरेबाँ
इक जंग-ए-जमल आज मसाजिद में छिड़ी है