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ग़ज़ल
नींद रोती रही सुनसान खंडर में छुप कर
क़स्र-ए-शाही का हसीं मख़मलीं बिस्तर ख़ामोश
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
सतवत-ए-क़स्र-ए-शही धोके में रखता है कि जो
अज़्मत-ए-गुम्बद-ओ-मेहराब से कम वाक़िफ़ है