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ग़ज़ल
महबस में कुछ हब्स है और ज़ंजीर का आहन चुभता है
फिर सोचो हाँ फिर सोचो हाँ फिर सोचो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
क़ाफ़िले शौक़ के रुकते नहीं दीवारों से
सैंकड़ों महबस-ओ-ज़िन्दाँ के दयार आते हैं
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
दिल के महबस में करें ज़ात का मातम कब तक
आओ बाहर तो चलें वक़्त का अंदाज़ा करें
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
ये जहाँ है महबस-ए-बे-अमाँ कोई साँस ले तो भला कहाँ
तिरा हुस्न आ गया दरमियाँ यही ज़िंदगी का जवाज़ है
शाज़ तमकनत
ग़ज़ल
ख़ुद-नुमाई थी कि था महबस-ए-पिंदार का ख़ौफ़
क़ैस के जैब-ओ-गरेबाँ रहे क्यूँ चाक न कह
ज़िया जालंधरी
ग़ज़ल
दिल के महबस से चले थे क़ाफ़िले यादों के पर
इक किरन पलकों की सूली पर सवाली हो गई