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ग़ज़ल
दिल बहुत बे-ताब था उन को मुक़ाबिल देख कर
हाँ मगर मैं होश में था रंग-ए-महफ़िल देख कर
आबिद अख़्तर
ग़ज़ल
बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को
पर्दा-ए-कुफ्र में हासिल हुआ ईमाँ मुझ को