आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "mahmil"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "mahmil"
ग़ज़ल
पस-ए-पर्दा भी लैला हाथ रख लेती है आँखों पर
ग़ुबार-ए-ना-तवान-ए-क़ैस जब महमिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
हैं रवाँ उस राह पर जिस की कोई मंज़िल न हो
जुस्तुजू करते हैं उस की जो हमें हासिल न हो
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
न कर दें मुझ को मजबूर-ए-नवाँ फ़िरदौस में हूरें
मिरा सोज़-ए-दरूँ फिर गर्मी-ए-महफ़िल न बन जाए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कभी अपना भी नज़ारा किया है तू ने ऐ मजनूँ
कि लैला की तरह तू ख़ुद भी है महमिल-नशीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वो मुझ को देख कर कुछ अपने दिल में झेंप जाते हैं
कोई परवाना जब शम-ए-सर-ए-महफ़िल से मिलता है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
कोई नालाँ कोई गिर्यां कोई बिस्मिल हो गया
उस के उठते ही दिगर-गूँ रंग-ए-महफ़िल हो गया
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
बुतान-ए-महविश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
कि जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
अपने दीदार की हसरत में तू मुझ को सरापा दिल कर दे
हर क़तरा-ए-दिल को क़ैस बना हर ज़र्रे को महमिल कर दे
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हो सरसर-ए-फ़ुग़ाँ से न क्यूँकर वो मुज़्तरिब
मुश्किल हुआ है पर्दा-ए-महमिल को थामना