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ग़ज़ल
ने'मत-ए-ग़म से जो दिल महरूम हो वो दिल नहीं
जाम ख़ाली हो तो क्यों कर उस को पैमाना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
ख़ुदा करे ये समझ ले मआल-ए-इश्क़-ए-बुताँ
दु'आ करो कोई 'महरूम'-ए-ख़स्ता-जाँ के लिए
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
ब-ईं कमाल-ए-ख़िरद क्यूँ है माइल-ए-इल्हाद
मक़ाम-ए-'जोश' को 'महरूम'-ए-ज़ार क्या जाने
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
नग़्मा-ज़न सहरा में हो जिस तरह कोई अंदलीब
यूँ है ऐ 'महरूम' सरहद में ग़ज़ल-ख़्वानी मिरी
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
न भूलेगा हमें 'महरूम' सुब्ह-ए-रोज़-ए-महशर तक
किसी का मौत के आग़ोश में वक़्त-ए-सहर जाना
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
इंतिज़ार-ए-अब्र में 'महरूम' भी है बे-क़रार
अपनी रहमत से दिखा इस को फ़ज़ा बरसात की
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
न कर 'महरूम' तू फ़िक्र-ए-सुख़न अब फ़िक्र-ए-उक़्बा कर
नवा-परवाज़ बज़्म-ए-शेर में आज़ाद होता है
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
ये गुस्ताख़ी है ऐ 'महरूम' अपनी हद से बढ़ता है
कि ता-हद्द-ए-ज़मीन-ए-ग़ालिब-ए-मुश्किल-पसंद आया
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
जवानी जा चुकी 'महरूम' ज़ौक़-ए-आरज़ू कैसा
तुम्हारे बे-नियाज़-ए-मुद्दआ होने का वक़्त आया
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
नग़्मा-आराई पे होता है जो माइल फ़लसफ़ी
वो भी खिचता है सू-ए-सहन-ए-गुलिस्तान-ए-ग़ज़ल