aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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परिणाम "mahv-e-safar"
मंज़िल-ए-ख़्वाब है और महव-ए-सफ़र पानी हैआँख क्या खोलीं कि ता-हद्द-ए-नज़र पानी है
कौनसा दौर आ गया साहबशेर महदूद क़ाफ़ियों तक है
हल्क़ा हल्क़ा लग रहा है फूल अब ज़ंजीर कामहव-ए-लुत्फ़-ए-ख़्वाब आँखें क्या करें ता'बीर का
जल रहे हैं सोज़िश-ए-मंज़र से पाँवगो 'सफ़र' सारा ख़याली है अभी
अब कौन ये समझेगा 'सफ़र' बर-सर-ए-मक़्तलहम लर्ज़ा-बर-अंदाम हैं या झूम रहे हैं
इक याद सर-ए-शाम सफ़र करती रहेगीऔर क़र्या-ए-जाँ कू-ए-बुताँ होता रहेगा
क़सीम-ए-'इश्क़ है उल्फ़त लुटा लुटा के 'सफ़र'वुजूद-ए-नुतफ़ा-ए-शर को मिटाए देता है
ढलता जाता हूँ तिरे साथ 'सफ़र' करते हुएऔर क्या मुझ से तू ऐ वक़्त-ए-रवाँ चाहता है
महव-ए-सफ़र हूँ गर्म-ए-सफ़र हूँमेरी नज़र में रिफ़अत न पस्ती
क्या कहें महव-ए-सफ़र हैं कब सेजिस्म का बोझ उठाए अपने
बुलंदी छू के आऊँ आसमाँ कीपरिंदा हूँ सदा महव-ए-सफ़र हूँ
अपने घर से कभी नहीं निकलाऔर महव-ए-सफ़र रहा हूँ मैं
तू जो पेश-ए-नज़र नहीं रहतामैं यूँ महव-ए-सफ़र नहीं रहता
जिस पे महव-ए-सफ़र रहा तू मुदामबस वही मेरी रहगुज़र ठहरी
आग सी धूप में हूँ महव-ए-सफ़रछाँव बन कर जो हम-रिकाब है वो
उसी तरफ़ है ज़माना भी आज महव-ए-सफ़र'फ़राग़' मैं ने जिधर से गुज़रना चाहा था
सरों पे अपने तमाज़त का बोझ उठाए हुएये कौन महव-ए-सफ़र है डगर डगर यूँही
बुलंदियों पे था महव-ए-सफ़र हुआ की तरहलिबास-ख़ाक जो पहना तो ख़ाकसार हुआ
यूँ महव-ए-सफ़र हूँ तिरी जुस्तुजू मेंनज़र मेरी आगे है शम्स-ओ-क़मर से
था महव-ए-सफ़र अपनी ही तकमील की जानिबजो नक़्श भी देखा वो अधूरा नज़र आया
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