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ग़ज़ल
हम तो कहते थे कि लब से न लगा साग़र-ए-इश्क़
मय-ए-अंदोह से अब हम हुए सरशार कि तू
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
ग़म-ओ-अंदोह में तो मुस्कुराना मेरी फ़ितरत है
रहूँ अफ़्सुर्दा-दिल तो ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
नशा उतरा मगर अब भी तुम्हारी मस्त आँखों से
पिए थे जो मय-ए-उल्फ़त के साग़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
ये बात अलग साक़ी नवाज़े न नवाज़े
हम मय-कदा-ए-इश्क़ के मय-ख़्वार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
लहू टपका है रफ़्ता-रफ़्ता मिज़्गान-ए-मुग़न्नी से
हुआ है ख़ुश दिल-ए-अंदोह-गीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
मर चुका मैं तो नहीं उस से मुझे कुछ हासिल
बरसे गर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे ब'अद
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तलव्वुन चश्म-ए-साक़ी में तग़य्युर वज़्-रिंदी में
हमारे मय-कदे में रोज़ पैमाने बदलते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
जो हर नज़र में ताज़ा करें मय-कदे हज़ार
सच है 'सुरूर'-ए-रफ़्ता को वो याद क्या करें