आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "majaaz"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "majaaz"
ग़ज़ल
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
होती है इस में हुस्न की तौहीन ऐ 'मजाज़'
इतना न अहल-ए-इश्क़ को रुस्वा करे कोई
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
बख़्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुरअतें 'मजाज़'
डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहाँ से हम
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
कोई दुनिया में मानूस-ए-मिज़ाज-ए-दिल नहीं मिलता
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
देख सकता हूँ जो आँखों से वो काफ़ी है 'मजाज़'
अहल-ए-इरफ़ाँ की नवाज़िश मुझे मंज़ूर नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मिटते हुओं को देख के क्यूँ रो न दें 'मजाज़'
आख़िर किसी के हम भी मिटाए हुए तो हैं