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ग़ज़ल
वक़्त करता है भला किस से यहाँ हुस्न-ए-सुलूक
वो भी इस दौर में क़ानून-ए-मकाफ़ात के साथ
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
मा'रिफ़त ख़ालिक़ की आलम में बहुत दुश्वार है
शहर-ए-तन में जब कि ख़ुद अपना पता मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तिश्नगी के भी मक़ामात हैं क्या क्या यानी
कभी दरिया नहीं काफ़ी कभी क़तरा है बहुत