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ग़ज़ल
जिंस-ए-मख़लूत हैं और अपने ही आज़ार में हैं
हम कि सरकार से बाहर हैं न सरकार में हैं
अरशद अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
वलद-उल-क़हबा से पूछो न, तिरी ज़ात है क्या
बीज में उस के हैं मख़लूत कई ज़ात के बीज
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
रंग-बिरंगी तस्ख़ीरों के बिस्तर का रूमान सँभालो
पाएँती ख़्वाह जुदागाना हो रक्खो मगर मख़लूत सिरहाना
यासिर इक़बाल
ग़ज़ल
मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
हम अपना ग़म लिए बैठे हैं उस बज़्म-ए-तरब में भी
किसी नग़्मे से अब 'मख़मूर' साज़-ए-दिल नहीं मिलता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
है ज़ुल्म तिरा आम बहुत फिर भी सितमगर
मख़्सूस ये अंदाज़-ए-जफ़ा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
ख़ुदा जब तक न चाहे आदमी से कुछ नहीं होता
मुझे मालूम है मेरी ख़ुशी से कुछ नहीं होता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
इक गर्दन-ए-मख़्लूक़ जो हर हाल में ख़म है
इक बाज़ू-ए-क़ातिल है कि ख़ूँ-रेज़ बहुत है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हाए वो वक़्त कि जब बे-पिए मद-होशी थी
हाए ये वक़्त कि अब पी के भी मख़्मूर नहीं