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ग़ज़ल
बहुत जी चाहता है क़ैद-ए-जाँ से हम निकल जाएँ
तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
क्यूँ दिया था? बता! मेरी वीरानियों में सहारा मुझे
मैं उदासी के मलबे तले दफ़्न थी, क्यूँ निकाला मुझे
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
किस को फ़ुर्सत है कि ता'मीर करे अज़-सर-ए-नौ
ख़ाना-ए-ख़्वाब के मलबे से निकाले मुझे कोई
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
मेरे शानों पे फ़रिश्तों का भी है बार-ए-गिराँ
और मिरे सामने इक मलबे की तामीर भी है