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ग़ज़ल
हैं मुख़्तलिफ़ अल्फ़ाज़ मगर एक हैं मा'नी
ज़िंदाँ मलक-उल-मौत जहन्नम शब-ए-फ़ुर्क़त
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
मालिक-उल-मुल्क नसारा हुए कलकत्ते के
ये तो निकली अजब इक वज़्अ' की जंजाल की खाल