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ग़ज़ल
महफ़िल इश्क़ में जो यार उठे और बैठे
है वो मलका कि सुबुक-बार उठे और बैठे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
किस की याद आई मोअ'त्तर हो रहे हैं ज़ेहन-ओ-दिल
किस की ख़ुशबू से है सारा पैरहन महका हुआ
जहाँगीर नायाब
ग़ज़ल
इश्क़ में हम कोई दावा नहीं करते लेकिन
कम से कम मार्का-ए-जाँ में न हारेंगे तुम्हें