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ग़ज़ल
मुझे मालूम है उन की दुआएँ साथ चलती हैं
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैं ने देखा है
आलोक श्रीवास्तव
ग़ज़ल
हम जो कुछ हैं हम जैसे हैं वैसे ही दिखाई देते हैं
चेहरे पे भभूत नहीं मलते कभी काले बाल नहीं करते
वाली आसी
ग़ज़ल
तिरे बीमार-ए-ग़म की अब तो नब्ज़ें भी नहीं मिलतीं
कफ़-ए-अफ़सोस मलते हैं कलाई देखने वाले
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
दिल में यूँ बेदार होते हैं ख़यालात-ए-ग़ज़ल
आँखें मलते जिस तरह उट्ठे कोई मस्त-ए-शबाब