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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मिरे ख़िज़्र के क़दम हैं मुझे मशअ'ल-ए-मनाज़िल
मिरे दीदा-ए-तलब में है निगाह-ए-मुजरिमाना
एहसान दानिश
ग़ज़ल
मज़े के साथ गुज़रा हूँ मोहब्बत की मनाज़िल से
कभी अपना मक़ाम आया कभी उन का मक़ाम आया
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
कुछ रास्ते दुश्वार मनाज़िल के थे और कुछ
जज़्बों में 'ख़याल' अपने सदाक़त भी नहीं थी
रफ़ीक़ ख़याल
ग़ज़ल
ग़ज़ब का जज़्ब है 'वासिफ़' निगाह-ए-मस्त में उस की
मनाज़िल क़त्अ होते हैं अज़ीमत बढ़ती जाती है
वासिफ़ देहलवी
ग़ज़ल
क्यूँ-कर करे न हर-दम क़त्-ए-मनाज़िल-ए-उम्र
तेग़-ए-ज़बाँ से अपनी चालाक ज़िंदगी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
तरीक़-ए-इश्क़ में अक्सर इक ऐसा भी मक़ाम आया
क़दम उठने नहीं पाए कि मंज़िल का सलाम आया
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
मनाज़िल उम्र की ज़ाहिर मआल-ए-ज़िंदगी लाज़िम
जुनूँ की सरख़ुशी बेहतर सुरूर-ए-मय-कशी लाज़िम
राम प्रकाश राही
ग़ज़ल
मनाज़िल इश्क़ की यूँ रोज़-ओ-शब तय कर रहा हूँ मैं
कि जैसे गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार आहिस्ता आहिस्ता