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ग़ज़ल
क्यूँ तिरे होंट मुझे देते हैं मंफ़ी में जवाब
मेरे होंटों पे ये रह रह के सवाल आता है
चरख़ चिन्योटी
ग़ज़ल
मिरे अतराफ़ जितनी भी हैं मंफ़ी क़ुव्वतें हैं
किसी की ज़िद के और अपनी अना के दरमियाँ हूँ
यासमीन हमीद
ग़ज़ल
ये ख़ैर-ओ-शर में तनासुब तुम्ही से क़ाएम है
तुम्ही हो मुसबत-ओ-मनफ़ी के संग-ए-हाक़ तुम्ही