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ग़ज़ल
मैं ये मानता हूँ मिरे दिए तिरी आँधियों ने बुझा दिए
मगर एक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
जाम-ए-जम की धूम है सारे जहाँ में साक़िया
मानता हूँ मैं भी लेकिन तेरे पैमाने के बाद