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ग़ज़ल
गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया
मैं तेग़-ए-तेज़ था लेकिन मुझे ज़वाल आया
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
तेरी गली में इक दीवाना अक्सर आया करता था
दीवारों से सर टकरा के लुत्फ़ उठाया करता था
सय्यद नसीर शाह
ग़ज़ल
आक़िब साबिर
ग़ज़ल
आलाम-ओ-रंज-ओ-ग़म की तभी लब-कुशाई थी
जब साहिलों पे अश्कों ने बस्ती बसाई थी