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ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
निगारिश मक़सद-ए-तख़लीक़-ए-बर्ग-ए-गुल पे है लेकिन
किसे है ताब-ए-नज़्ज़ारा चराग़-ए-तूर जलता है
बेबाक भोजपुरी
ग़ज़ल
परवाने अब अपनी अपनी आग में जलते रहते हैं
शोलों के बटवारे से था मक़्सद-ए-शम्-ए-महफ़िल क्या
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
बहाना ढूँढ लिया तुझ से बात करने का
कुछ और मक़्सद-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं ऐ दोस्त
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
वही शय मक़सद-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र महसूस होती है
कमी जिस की बराबर उम्र भर महसूस होती है