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ग़ज़ल
अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए
जो क़ातिल थे मक़्तूल हुए जो सैद थे अब सय्याद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़ातिल भी मक़्तूल भी दोनों नाम ख़ुदा का लेते थे
कोई ख़ुदा है तो वो कहाँ था मेरी क्या औक़ात लिखूँ
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
आप-अपने क़त्ल में शामिल था मैं मक़्तूल-ए-शौक़
ये खुला मुझ पर तलब का ख़ूँ-बहा देते हुए
रियाज़ मजीद
ग़ज़ल
दम-ब-ख़ुद हूँ अब सर-ए-मक़्तल ये मंज़र देख कर
मैं कि ख़ुद मक़्तूल हूँ लेकिन सफ़-ए-क़ातिल में हूँ
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
दिल में मक़्तूल की तस्वीर लिए फिरता हूँ
और क़ातिल से अक़ीदत का भी इज़हार करूँ