आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "mar-mar"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "mar-mar"
ग़ज़ल
मर मर के जिए यूँ दुनिया में जीने का सलीक़ा भूल गए
बेनाम-ओ-निशाँ कुछ ऐसे हुए हम नाम भी अपना भूल गए
बनो ताहिरा सईद
ग़ज़ल
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
ग़ज़ल
जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम
हँस के बोले तुम्हें जीना था तो मर क्यूँ न गए
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
जीता हूँ जो मर मर के ये जीना तो नहीं है
दुनिया मिरे एहसास की दुनिया तो नहीं है