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ग़ज़ल
ये तर्ज़ एहसान करने का तुम्हीं को ज़ेब देता है
मरज़ में मुब्तला कर के मरीज़ों को दवा देना
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
दिल के मरज़ का अब नहीं दुनिया में कुछ इलाज
ये इश्क़-ए-ला-दवा है मुझे मार दीजिए
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
ये रंग-ए-बे-कसी रंग-ए-जुनूँ बन जाएगा ग़ाफ़िल
समझ ले यास-ओ-हिरमाँ के मरज़ की इंतिहा क्या है