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ग़ज़ल
मैं हूँ बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-उफ़्तादा मैं मरदूद दहक़ाँ हूँ
गिरा हूँ उन की नज़रों से उठा ले जिस का जी चाहे
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
कोई मरदूद-ए-ख़लाइक़ नहीं मुझ सा 'आतिश'
क्या कहूँ कहते हैं हिंदू-ओ-मुसलमाँ क्या क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
इस गुलशन-ए-दुनिया में शगुफ़्ता न हुआ मैं
हूँ ग़ुंचा-ए-अफ़्सुर्दा कि मर्दूद-ए-सबा हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अब कहीं कोई ठिकाना ही नहीं जुज़ कू-ए-यार
मुर्तद-ए-काअबा हुआ मर्दूद-ए-बुत-ख़ाना हुआ
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
ख़ार-ए-मरदूद-ए-चमन मुझ को किया रोज़-ए-अज़ल
जिन ने भेजा है तुझे गूना-ए-गुलज़ार के साथ
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
कि बस बादा-कशी मतलब तवाँ हर जा है शीशे की
था कब मर्ग़ूब था इदराक याँ मरदूद शीशे का
अबान आसिफ़ कचकर
ग़ज़ल
मुझ को अर्बाब-ए-ज़माना से कोई लाग न थी
मैं तो मरदूद-ए-जहाँ बस तिरी शफ़क़त में हुआ