आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "marg-e-aashiq"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "marg-e-aashiq"
ग़ज़ल
मर्ग-ए-आशिक़ पर जो बरहम हो दो-आलम का वरक़
हैफ़ है ऐ जाँ तुझे मलना कफ़-ए-अफ़सोस का
करामत अली शहीदी
ग़ज़ल
वो भी हैं अफ़्सुर्दा मर्ग-ए-आशिक़-ए-नाशाद पर
कहने वाला कौन है अब मर्हबा बेदाद पर
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
ख़ाक-ए-आशिक़ से उगाता है मुग़ीलाँ का दरख़्त
उस की मिज़्गाँ का है मरक़द में भी खटका बाक़ी
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
मर्ग-ए-आशिक़ का 'अबस है सोग हर दम इस क़दर
छुट गया वो क़ैद-ए-ग़म से तुम को फ़ुर्सत हो गई
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
शम-ए-महफ़िल हूँ न आशिक़ न मैं बू-ए-गुल हूँ
मह-जबीं क्यूँ मुझे आँचल की हवा देते हैं
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
मिरे नालों का 'आशिक़' रंग उड़ाया अंदलीबों ने
ख़िराम-ए-यार की शोहरत हुई सारे चकोरों में
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
रब्त कुछ दाग़-ओ-जिगर का तो है चस्पाँ 'आशिक़'
वर्ना इस दौर में कोई भी किसी का न हुआ
आशिक़ अकबराबादी
ग़ज़ल
मिले न क्यूँ तुम्हें शाहों का मर्तबा 'आशिक़'
बहुत दिनों दर-ए-ख़्वाजा पे है गदाई की