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ग़ज़ल
किस किस फूल की शादाबी को मस्ख़ करोगे बोलो!!!
ये तो उस की देन है जिस को चाहे वो महकाए
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
सब क़द्रें पामाल हुईं इंसाँ ने ख़ुद को मस्ख़ किया
क़ुदरत ने कितनी मेहनत की थी अपनी बज़्म-आराई में
ज़फ़र हमीदी
ग़ज़ल
अपने आईने में ख़ुद अपनी ही सूरत हुई मस्ख़
मगर इस टूटे हुए दिल का मुदावा भी नहीं
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
इस दौर में कि चेहरे ही 'अंजुम' हुए हैं मस्ख़
क्या ख़त्त-ओ-ख़ाल से तिरे अंदाज़ा कीजिए