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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मतीन नियाज़ी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मसर्रतों की फ़ज़ा में सदा वो रहते हैं
जो ग़म के मारों से मिलते हैं मेहरबाँ बन कर
अफ़ज़ल इलाहाबादी
ग़ज़ल
तुझे क्या बताऊँ मैं हम-नशीं मिरी ज़िंदगी का जो हाल है
न मसर्रतों की कोई ख़ुशी न ग़मों का कोई मलाल है
शफ़ीक़ बरेलवी
ग़ज़ल
यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले
मैं मसर्रतों में गुम था तिरी दोस्ती से पहले
अफ़रोज़ आलम
ग़ज़ल
जो उन के ग़म से हो निस्बत तो हर जहान में 'कैफ़'
मसर्रतों का ख़ज़ाना है आदमी के लिए