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ग़ज़ल
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
मशहद पे दिल के दीदा-ए-गिर्यां पुकार दे
प्यासा न जा ब-नाम-ए-शहीदाँ सबील है
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
ये बुलबुलों का सबा मशहद-ए-मुक़द्दस है
क़दम सँभाल के रखियो तिरा ये बाग़ नहीं