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ग़ज़ल
ज़िंदगी इस लिए शायद है पशेमाँ ऐ 'होश'
कि फ़क़त मौत है सरमाया-ए-इंसाँ ऐ 'होश'
होश नोमानी रामपुरी
ग़ज़ल
हम ने सौंपी है उन्हें अपनी हिफ़ाज़त ऐ 'होश'
जिन को आया नहीं ख़ुद अपनी निगहबाँ होना
होश नोमानी रामपुरी
ग़ज़ल
यहाँ भी की मिरे दामन ने दुश्मनी ऐ 'होश'
वगरना मैं तो हिफ़ाज़त से इस शजर में था
होश नोमानी रामपुरी
ग़ज़ल
चलो ऐ 'होश' ये पूछेंगे कूचा-गर्द क़ाइद से
सियासत मश्ग़ला है या कोई तहरीक रखते हैं
होश नोमानी रामपुरी
ग़ज़ल
हर लहज़ा इंहिदाम का है ख़ौफ़ मुझ को 'होश'
मैं इस दयार-ए-शोर-ओ-शर-ए-ज़लज़ला में हूँ