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ग़ज़ल
गर सग-ए-गुरसिना ले शूम के मतबख़ की बास
तो भला हड्डी की जा क्या वो भंबोड़े पत्थर
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
जब्बार वासिफ़
ग़ज़ल
नहीं जुज़ क़ुर्स मेहर-ओ-माह कुछ गर्दूं के मतबख़ में
सो वो भी एक नान-ए-सोख़्ता और एक आबी है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
मसलख़-ए-इश्क़ में खिंचती है ख़ुश-इक़बाल की खाल
भेड़ बकरी से है कम-क़द्र बद-आमाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मत कर 'अफ़रीदी' को इस मस्लख़ में पाबंद आख़िरश
ज़ब्ह हो जावेंगे तेरे हाथ ऐ क़स्साब हम