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ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
ढंग की बात कहे कोई, तो बोलूँ मैं भी
मतलबी हूँ, किसी मतलब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
मैं तो समझा सब से बढ़ कर मतलबी था मैं यहाँ
ख़ुद पे तोहमत धर चुका था धर चुका तो तुम मिले
औरंग ज़ेब
ग़ज़ल
मैं ख़ुद-ग़रज़ में मतलबी तभी ख़ुदा से प्यार भी
किसी के नाम पर किया कि राब्ता बना रहे