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ग़ज़ल
जल गया धूप में यादों का ख़ुनुक साया भी
बे-नवा दश्त-ए-बला में कोई हम सा भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
ऐ 'मौज' हम ने ग़र्क़ सफ़ीना ही कर दिया
मिन्नत-कश-ए-तलातुम-ओ-तूफ़ाँ कहाँ रहे
राजेन्द्र बहादुर माैज
ग़ज़ल
हम ने माँगा था सहारा तो मिली इस की सज़ा
घटते बढ़ते रहे हम साया-ए-दीवार के साथ
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
दिखलाऊँ हुजूम-ए-ग़म असीरान-ए-वफ़ा को
दे दे कोई हम-साया-ए-ज़िंदाँ मुझे घर काश
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
हर तरफ़ ऐ 'मौज' आँगन में दर-ओ-दीवार से
धूप उतर आई तो हम उट्ठे हैं बिस्तर छोड़ के