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ग़ज़ल
वो मस्त हैं जो हैं मजरूह-ए-तेग़-ए-मौज-ए-मय
जिगर के चाक पे ऐ गुल बने सुबू-ए-शराब
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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वो मस्त हैं जो हैं मजरूह-ए-तेग़-ए-मौज-ए-मय
जिगर के चाक पे ऐ गुल बने सुबू-ए-शराब