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ग़ज़ल
सईदुल्लाह ख़ाँ उफ़ुक़
ग़ज़ल
बच गया मज़हका होता दम-ए-महशर कैसा
आप के धोके में यूसुफ़ को पुकारा होता
सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी
ग़ज़ल
गुफ़्तुगू मज़हका ज़ा बरसर-ए-मिम्बर कैसी
हँस रहे हैं तुझे सब अपने पराए वाइज़