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ग़ज़ल
सुना दे साक़ी-ए-दौराँ को नाला-हा-ए-'मज़ाक़'
सिपिहर-ए-ख़ाक में मस्तों की हाव-हू न मिला
मज़ाक़ बदायूनी
ग़ज़ल
भूले हैं ज़ौक़-ए-मय से 'मज़ाक़' अपनी जाँ तो क्या
दिल से है याद-ए-साक़ी-ए-कौसर लगी हुई
मज़ाक़ बदायूनी
ग़ज़ल
'मज़ाक़' मिलती है इन रोज़ों वक़्त-ए-शाम शराब
रखे है दुख़्तर-ए-रज़ को सियाम शीशे में
मज़ाक़ बदायूनी
ग़ज़ल
तबाह कर न मज़ाक़-ए-जुनूँ की ख़ुद्दारी
दिल-ए-तबाह किसी तुंद-ख़ू की बात न कर
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
क़ाबिल अजमेरी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आसमाँ की खोज में हम से ज़मीं भी खो गई
कितनी पस्ती में मज़ाक़-ए-बाल-ओ-पर ले जाएगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
उस की आवारगी को दु'आएँ दो ऐ साहिबान-ए-जुनूँ
जिस के नक़्श-ए-क़दम ने बिछाए सर-ए-रहगुज़र आइने
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
चली ख़िरद की न कुछ आगही ने साथ दिया
रह-ए-जुनूँ में फ़क़त बे-ख़ुदी ने साथ दिया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
ज़िंदा हो रस्म-ए-जुनूँ किस की नवा-रेज़ी से
अब रहा कौन यहाँ शो'ला-ब-जाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
कोई मिलता ही नहीं वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-जुनूँ
अब तो बस्ती ही अलग अपनी बसा ली जाए