आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "mazammat"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "mazammat"
ग़ज़ल
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
क्या मज़म्मत है मुझे सुब्ह-ए-शब-ए-हिज्र उन से
जिन से कहता था कि बचना मिरा मुमकिन ही नहीं
जलाल लखनवी
ग़ज़ल
ज़ौक़-ए-मस्ती की मज़म्मत न कर इतनी ऐ शैख़
क्या तुझे नश्शा-ए-ज़ौक़-ए-मय-ए-उल्फ़त भी नहीं
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
जिस पे कि बैठ के वाइ'ज़ ने मज़म्मत मय की
मजलिस-ए-वाज़ में रिंदों ने वो मिम्बर उल्टा
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
मय की मज़म्मत और जनाब-ए-शैख़ फिर इस चटख़ारे से
राल यक़ीनन टपकी होगी वर्ना क्यों हैं गीले होंट
मुबारक मुंगेरी
ग़ज़ल
कौन सा ख़ौफ़ रग-ओ-पै में समाया है कि अब
मैं बुराई की मज़म्मत भी नहीं कर सकता
राना मोहम्मद यूसुफ़
ग़ज़ल
हर ज़ुल्म पर किया है ज़माने से एहतिजाज
कुछ भी न बन पड़ा तो मज़म्मत ज़रूर की
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
ख़ैर उस में है वाइ'ज़ कि कभी मय की मज़म्मत
करना न किसी रिन्द-ए-ख़ुश-अतवार के आगे
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
मज़म्मत मय की करने आए हो मयख़ाने में वाइ'ज़
ज़रा सोचो तो ये भी काम है कोई शरीफ़ाना