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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
उमैर नजमी
ग़ज़ल
दुनिया के सब कारज छोड़े नाम पे तेरे 'इंशा' ने
और उसे क्या थोड़े ग़म थे तेरा इश्क़ मज़ीद हुआ