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ग़ज़ल
तुलू-ए-मेहर ने फूलों की ज़िंदगी कम की
ये क्या ख़ुशी है कि तक़दीर खुल गई ग़म की
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल
अज़ीज़ बदायूनी
ग़ज़ल
अपनी हद तक भी जो मुख़्तार नहीं है ऐ दोस्त
कौन कहता है गुनहगार नहीं है ऐ दोस्त
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल
हुदूद-ए-ज़ात में औरों का ज़िक्र ही क्या है
ख़ुद आदमी भी न समझा कि आदमी क्या है
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
ग़ज़ल
उमीद-ए-मेहर पर इक हसरत-ए-दिल हम भी रखते थे
तमन्ना वस्ल की ऐ माह-ए-कामिल हम भी रखते थे
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
क्यूँ न हो ज़िक्र मोहब्बत का मरे नाम के साथ
उम्र काटी है इसी दर्द-ए-दिल-आराम के साथ