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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने बिखर बिखर के तमाम शब
तिरा नाम लिक्खा है रेत पर कोई लहर आ के मिटा न दे
बशीर बद्र
ग़ज़ल
वो जो हुक्म दें बजा है, मिरा हर सुख़न ख़ता है
उन्हें मेरी रू-रिआयत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते