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ग़ज़ल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
क़त्अ मिक़राज़-ए-ख़मोशी से ज़बाँ को कीजिए
क़ुफ़्ल दे कर गंज पर मिफ़्ताह तोड़ा चाहिए
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
मिरी वहशत कतरती है मिरे जीवन के पल हर रोज़
है वहशत ज़िंदगी की यार क्यों मिक़राज़ जान-ए-मन
अदनान हामिद
ग़ज़ल
वो आवारा हूँ मैं है ख़त्म मुझ पर तेज़-रफ़्तारी
कि हैं मिक़राज़ दोनों पाँव मेरे क़त-ए-मंज़िल में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
ज़बाँ की कर के मिक़राज़ और बना दुश्नाम का काग़ज़
हमारे हक़ में क्या क्या आप ने कतरे हैं गुल-बूटे
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ख़ुदा आबाद रक्खे 'शाद' मेरे उन अज़ीज़ों को
मज़ा चखवा दिया अल-कर्ज़-ओ-मिक़राज़-उल-मोहब्बत का
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
रिश्ता-ए-ज़र रिश्ता-ए-ख़ूँ से है बढ़ कर मो'तबर
वर्ना चाहत के लिए क़र्ज़ा बने मिक़राज़ क्यूँ
कृष्ण मोहन
ग़ज़ल
ख़स्म जो मिक़राज़-ए-गुलचीं हैं तिरे ऐ शम्अ-क़द
जूँ पतिंगे जल गए हम जो तिरे यारों में थे
वली उज़लत
ग़ज़ल
ज़ंग-आलूद ज़बाँ तक पहूँची होंटों की मिक़राज़
ख़ामोशी की झील में डूबी पसमाँदा आवाज़
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
गुफ़्तुगू में हो ज़बाँ मिक़राज़-ख़ू लाज़िम नहीं
बे-ज़बानी में भी इक तौर-ए-बयाँ रखता हूँ मैं
वाहिद नज़ीर
ग़ज़ल
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा