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ग़ज़ल
ऐ 'अना' तुम मत गिराना अपने ही किरदार को
उन को कहने दो कि ख़ुद-दारी कहाँ आ गई
नफ़ीसा सुल्ताना अंना
ग़ज़ल
मज़ा देता नहीं 'हाफ़िज़' रुख़-ओ-गेसू का नज़्ज़ारा
मिसाल-ए-आईना जब तक न हो आँखों में हैरानी
मोहम्मद विलायतुल्लाह
ग़ज़ल
मोहब्बत है हमें शायद किसी आईना-तलअ'त से
मिसाल-ए-आइना तकते हैं मुँह इक इक का हैरत से
वली काकोरवी
ग़ज़ल
सभी महव-ए-ख़ुद-नुमाई ब-मिसाल-ए-आइना हैं
ये ख़ुदाई से निराला है गिरोह-ए-ख़ुद-पसंदाँ