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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
वक़्त है गर बुलबुल-ए-मिस्कीं ज़ुलेख़ाई करे
यूसुफ़-ए-गुल जल्वा-फ़रमा है ब-बाज़ार-ए-चमन
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़क़ीरों को कभी दर से न ख़ाली लौटने देना
दुआएँ देते हैं ख़ैरात जब मिस्कीन लेते हैं
फैज़ुल अमीन फ़ैज़
ग़ज़ल
ख़ुदाया ख़ैर हो मामूर-हा-ए-रुब मिस्कीं की
कि अब दिल खोल कर रोने की आदत बढ़ती जाती है
वासिफ़ देहलवी
ग़ज़ल
बदन सोने का रखता है वो दिलबर देखने उस को
लगा कर सुर्मा-ए-ज़र्रीं चलो मिस्कीन आँखों में
सय्यद शीबान क़ादरी
ग़ज़ल
ताक़त के आगे गर्बा-ए-मिस्कीं की म्याऊँ म्याऊँ
ना-ताक़ती को देख के पंजा निकालिए
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
बअ'द मुद्दत गर्दिश-ए-तस्बीह से 'मिस्कीं' हमें
दाना-ए-तस्बीह में ज़ुन्नार आता है नज़र