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ग़ज़ल
मिस्ल-ए-गुल खिल कि ये ग़ुंचा-दहनी ख़ूब नहीं
बात कर हम से भी कुछ कम-सुख़नी ख़ूब नहीं
चंदू लाल बहादुर शादान
ग़ज़ल
बनाया है जिन्हें मैं ने मोहब्बत के गुलाबों से
तर-ओ-ताज़ा वो गुल-दस्ते तुम्हारे नाम करती हूँ
समीना गुल
ग़ज़ल
पुर्सिश-ए-दर्द को जब वो आने लगे
ज़ख़्म-ए-दिल मिस्ल-ए-गुल मुस्कुराने लगे
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-गुल ज़ख़्म है मेरा भी सिनाँ से तव्वाम
तेरा तरकश ही कुछ आबिस्तनी-ए-तीर नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दौर-ए-ख़िज़ाँ में ख़ार भी महकेंगे मिस्ल-ए-गुल
मैं गुल्सिताँ में ऐसी फ़ज़ा छोड़ जाऊँगा