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ग़ज़ल
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
तुम्हारे गेसू-ए-पेचाँ की जब तारीफ़ लिखता हूँ
क़लम पाबंद हो जाता है मिसरों की सलासिल में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
मिसरों में गेसुओं की फ़साहत का भर के रंग
अपनी हर इक ग़ज़ल को सनद हम ने कर दिया
सिराजुद्दीन ज़फ़र
ग़ज़ल
काग़ज़ पर पेचीदा मिसरों की भर-मार लगा देते हैं
फिर दीवान-ए-मीर को तकते तकते थक कर सो जाते हैं
शब्बीर एहराम
ग़ज़ल
हम ने फूलों से मिसरों को ख़ून-ए-दिल से यूँ सींचा
सारी उम्र ही ख़ुशबू बाँटी हम ने इत्र-फ़रोशी की
यासिर रज़ा आसिफ़
ग़ज़ल
ये महफ़िल है मोहब्बत की तिरे मिसरों में नफ़रत है
कहा जो शे'र तू ने वो मुकर्रर हो नहीं सकता
उमर आलम
ग़ज़ल
दर्द से लबरेज़ दिल के ख़ून से लिक्खी हुई
चंद मिसरों में छुपी लम्बी कहानी है ग़ज़ल