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ग़ज़ल
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हँस के बुलवाइए मिट जाएगा सब दिल का गिला
क्या तसव्वुर है तुम्हारा कि मिटा भी न सकूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मैं जभी तक था कि तेरी जल्वा-पैराई न थी
जो नुमूद-ए-हक़ से मिट जाता है वो बातिल हूँ मैं