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ग़ज़ल
ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का
जो हश्र मुझ पे बपा है वो एहतिमाम उस का
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया
आफ़्ताब-ए-वक़्त नेज़े के बराबर आ गया
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया
मैं तेग़-ए-तेज़ था लेकिन मुझे ज़वाल आया
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
जब चारों-ओर अँधेरा था सच कम था झूट घनेरा था
दरिया से बड़े इक शख़्स का इक दरिया के किनारे डेरा था
सईद अहमद अख़्तर
ग़ज़ल
बन-सँवर कर जो वो बाज़ार निकल जाते हैं
देखने वालों के जज़्बात मचल जाते हैं
मोहम्मद आफ़ताब अहमद साक़िब
ग़ज़ल
तिरी तलाश की मीठी कसक से लुत्फ़ लिया
यक़ीन तोड़ने वाले ने शक से लुत्फ़ लिया