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ग़ज़ल
मेरे सुख़न को दर्द का उस्लूब मिल गया
या'नी ग़ज़ल को लहजा-ए-मतलूब मिल गया
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
गुज़रे हैं जब से ज़ाविया-ए-आगही से हम
दुनिया से बे-नियाज़ हुए हैं ख़ुशी से हम
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
जब भी किसी की याद में हम गुनगुनाए हैं
महसूस यूँ हुआ कि फ़ज़ाओं पे छाए हैं
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
अब तुम्हारे ख़्वाब भी मुझ को सज़ा देने लगे
मैं ने क्या चाहा था मुझ को क्या सिला देने लगे
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
मुझ पे कैसा ये मुक़द्दर का करम है देखो
सुब्ह-ए-उम्मीद भी अब शाम-ए-अलम है देखो
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
उदास उदास है बाद-ए-सहर नहीं मा'लूम
कहाँ कहाँ से हुआ है गुज़र नहीं मा'लूम
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
जाम-ए-ग़म आज भी छलकाओ कि कुछ रात कटे
साथ रक्खो मुझे बहलाओ कि कुछ रात कटे
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
जब दुखे दिल से निकलती है दु'आ आख़िर-ए-शब
काँप उठती है ज़माने की जफ़ा आख़िर-ए-शब
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
रंज-ओ-ग़म से जब कभी मानूस हो जाता है दिल
मौज बन कर गर्दिश-ए-दौराँ से टकराता है दिल