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ग़ज़ल
लुत्फ़ ज़ाहिर कर दिया दर्द-ए-निहानी देख कर
रहम ने पाई है क़ुव्वत ना-तवानी देख कर
मोहम्मद अली ख़ाँ रश्की
ग़ज़ल
मोहब्बत करने वालों का यही अंजाम होता है
तड़पना उन की क़िस्मत में तो सुब्ह-ओ-शाम होता है
राजा मेहदी अली ख़ाँ
ग़ज़ल
कुछ दाग़ मोहब्बत के छुपाने के लिए हैं
कुछ ज़ख़्म हैं जो सब को दिखाने के लिए हैं
ज़ाहिद अली ख़ान असर
ग़ज़ल
मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की
यक़ीं कीजो कि काफ़िर हो के अपनी राह खोटी की
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
मोहब्बत ग़ैर-फ़ानी है मरज़ है ला-दवा मेरा
ख़ुदा की ज़ात बाक़ी है मोहब्बत है ख़ुदा मेरा
अब्बास अली ख़ान बेखुद
ग़ज़ल
कुछ मोहब्बत में अजब शेव-ए-दिल-दार रहा
मुझ से इंकार रहा ग़ैर से इक़रार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल
रग-ओ-पै में भरा है मेरे शोर उस की मोहब्बत का
नमक-परवर वो हूँ मैं यार के हुस्न-ओ-मलाहत का
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
ख़ाक में मिल के हम-आग़ोश-ए-बक़ा हो जाना
ऐन हस्ती है मोहब्बत में फ़ना हो जाना
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
तवाफ़-ए-काबा-ओ-बुत-ख़ाना ला-हासिल समझते हैं
जो अपने दिल को हुस्न-ए-यार की मंज़िल समझते हैं
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
वाजिब-उल-क़त्ल मोहब्बत के गुनहगार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
रोज़ मत माँगिये मिट्टी की मोहब्बत का सुबूत
हम तो ये जिस्म उसी ख़ाक का छाने हुए हैं
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
ऐसा हुआ है यार मिरे इम्तिहाँ से ख़ुश
बुलबुल हो जैसे वस्ल-ए-गुल-ए-बोस्ताँ से ख़ुश
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
वो जो है अली-ए-वली वसी है मोहम्मद-ए-अरबी अख़ी
सो तू अब्द-ए-ख़ास-ए-करीम है उसे दुश्मनी है नुसैर से