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ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-दिल जुर्म नहीं तोड़ भी दे मोहर-ए-सुकूत
जो तुझे जानते हैं उन से छुपाता क्या है
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
दफ़्तर-ए-हुस्न पे मोहर-ए-यद-ए-क़ुदरत समझो
फूल का ख़ाक के तोदे से नुमायाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा
बे-तकल्लुफ़ दाग़-ए-मह मोहर-ए-दहाँ हो जाएगा
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
उस की बाज़ी उस के मोहरे उस की चालें उस की जीत
उस के आगे सारे क़ादिर माहिर शातिर कुछ भी नहीं
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
न हो हुस्न-ए-तमाशा-दोस्त रुस्वा बेवफ़ाई का
ब-मोहर-ए-सद-नज़र साबित है दा'वा पारसाई का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये खेल शाहों के मर्तबे का हदफ़ बनेंगे हमारे मोहरे
मैं बेबसी में शिकस्त खाए हुए पियादे से लड़ पडुँगी
कोमल जोया
ग़ज़ल
मोहर-ए-तग़य्युर इस धज से आफ़ाक़ के माथे पर चमका
सदियों के उफ़्तादा ज़र्रे हम-दोश-ए-अफ़्लाक हुए
ज़हीर काश्मीरी
ग़ज़ल
लगाते हैं लबों पर मोहर-ए-अर्बाब-ए-ज़बाँ-बंदी
अली-'सरदार' की शान-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी नहीं जाती